Sunday 26 July 2020

संसदात्मक शासन व्यवस्था V/s अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था (Source The Hindu,Indian Express)


प्रश्न :वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य ने भारत में संसदीय लोकतंत्र की सीमाओं को स्पष्ट कर दिया है। अब भारत को अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था को अपनाने के लिए शिद्दत से विचार करना चाहिए। विश्लेषण कीजिये।

उत्तर :हाल ही में भारत के कुछ राज्यों में राजनीतिक दलों द्वारा एक दूसरे पर विधायकों की खरीद -फरोख्त करने के आरोप लगाए गए हैं। इस तरह के आरोपों ने इस तथ्य को रेखांकित किया है कि भारत में राजनीतिक दलों और राजनेताओं के मूल्य लगातार गिरते जा रहे हैं।

भारत ने ब्रिटेन से प्रेरित होकर संसदात्मक शासन व्यवस्था को कुछ परिवर्तनों के साथ अपनाया था। जनसँख्या और विविधता की दृष्टि से भारत से छोटे ब्रिटेन में संसदात्मक शासन व्यवस्था के सही तरीके से काम करने के पीछे निम्न कारण प्रमुख हैं :-

. विचारधारा आधारित राजनीतिक दलों की उपस्थिति :

हर राजनीतिक दल की अपनी एक विचारधारा ,आदर्श और वरीयताएं होती हैं ;जो उसे दूसरे राजनीतिक दलों से अलग करती है।

. दल-बदल के प्रति नकारात्मक अभिवृति

हर राजनेता एक निश्चित दल की नीतियों और आदर्शों से बंधा हुआ होता है। एक दल से दूसरे दल में जाना आम जनता द्वारा ही नहीं बल्कि राजनीतिक दलों द्वारा भी अच्छा नहीं माना जाता।

. विधायिका सरकार की जवाबदेहिता तय करने के लिए महत्वपूर्ण

विधायिका को कार्यकारी शक्ति प्राप्त करने का जरिया नहीं समझा जाता। बल्कि इसका महत्वपूर्ण कार्य सरकार की जवाबदेहिता तय करना माना जाता है।

भारत में ब्रिटेन से भिन्न परम्पराएं विकसित हुई हैं। भारतीय संसदात्मक शासन में निम्न परम्पराओं के दर्शन होते हैं :-

.विधायिका को कार्यपालिका में शामिल होने के एक सेतु के रूप में देखा जाता है।
. शासन के बजाय राजनीती पर अधिक ध्यान दिया जाता है।
. भारत में बहुत से राजनीतिक दल किसी भी विचारधारा पर आधारित न होकर केवल अपने हितों की पूर्ती के लिए बना लिए जाते हैं।
. लोग राजनीतिक दलों के स्थान पर व्यक्ति विशेष को मत प्रदान करते हैं क्यूंकि राजनीतिक दलों की अपनी कोई निश्चित विचारधारा ,नीतियां और वरीयताएं नहीं होती हैं। इससे लोकप्रियता और एकाधिकारवाद जैसी प्रवर्तियाँ पनपती हैं ;जो लोकतंत्र के लिए नुकसानदायक हैं।

भारत के लिए अध्यक्षात्मक शासन एक समाधान हो सकता है क्यूंकि

. राजनीतिक प्रबंधन के स्थान पर शासन पर अधिक बल :
सभी स्तरों - केंद्र, राज्य और स्थानीय, पर एक सीधे निर्वाचित मुख्य कार्यकारी की नियुक्ति उन्हें कार्यकाल की सुरक्षा प्रदान करेगी।

. कार्यकारी में पूरे देश से कुशल लोगों की नियुक्ति संभव हो सकेगी।

.मतदाता विधायकों और कार्यपालिका के बीच अंतर कर सकेंगे। वे राष्ट्रपति के लिए मतदान कर सकेंगे और उनके प्रदर्शन के आधार पर उनका मूल्यांकन



इस व्यवस्था की कमियां
. एकाधिकारवादी और तानाशाह के शासन की संभावना
लेकिन भारत की संसदात्मक शासन प्रणाली में भी केंद्रीकृत दलों के साथ प्रधान मंत्री तानाशाही के रूप में कार्य कर सकते हैं और तब संभव है कि विधानसभाएँ रबर स्टैम्प में बदल जाएं।
इसके अलावा, अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था के अंतर्गत राष्ट्रपति के अधिकार सीधे राज्य के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों की शक्तियों द्वारा संतुलित किए जा सकते हैं।

२ संसदीय प्रणाली ने राजनीतिक प्रक्रिया में भारतीयों की भागीदारी को सक्षम किया है और राष्ट्र को एकजुट रखा है।

लेकिन यह संसदीय प्रणाली के बजाय मतदान और भागीदारी के लोकतांत्रिक अधिकार के कारण संभव हुआ है। अतः अध्यक्षात्मक शासन में भी लोगों की भागीदारी संभव है।

हमें एक ऐसी लोकतांत्रिक व्यवस्था चाहिए जो तंत्र के लोक तक सुशासन और प्रगति को पंहुचा सके। इसके लिए यदि वर्तमान व्यवस्था को बदलना उचित है तो उस पर सभी हितधारकों के साथ मिलकर विचार तो किया ही जा सकता है।

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