Wednesday 29 July 2020

पर्यावरण और कोरोना (Source The Hindu 30th July)


प्रश्न :हमें प्रकृति के साथ अपने संबंधों पर एक बार फिर से विचार करते हुए एक ऐसे विश्व का पुनःनिर्माण करना है जो की पर्यावरण के प्रति पूर्णरूपेण जिम्मेदार हो। हाल ही सर्वव्यापी महामारी कोरोना के मद्देनज़र इस कथन का विश्लेषण कीजिये।(Source :The Hindu)

उत्तर : आज सम्पूर्ण विश्व कोरोना महामारी का सामना कर रहा है।ऐसे कयास हैं की कोरोना जानवरों से मानवों में स्थानांतरित हुआ है। कोरोना के अलावा इबोला ,नेफा ,बर्ड फ्लू ,स्वाइन फ्लू ,सार्स आदि ऐसी कई संक्रामक बीमारियां हैं जिनके रोगकारक वन्य जीवों से मानवों में स्थानान्तरित हुए हैं। मानव और वन्यजीवों के मध्य बढ़ता निकट संपर्क इसका एक कारण है।

मानव और वन्य जीवों के मध्य संपर्क बढ़ने के निम्न कारण हैं :-

. जंगलों और अन्य पर्यावासों का नष्ट होना

मानव ने अपने विकास की अंधी दौड़ में कृषि और औधोगिक गतिविधियों के लिए आवश्यक भूमि प्राप्त करने के लिए वन्य जीवों के पर्यावासों और जंगलों को तेज़ी से नष्ट कर दिया है। अतः मानवीय बस्तियों में वन्यजीवों का प्रवेश मानव और वन्यजीवों के निकट संपर्क में वृद्धि करता है।

. जैव विविधता का नष्ट होना

पर्यावासों के नष्ट होने की प्रक्रिया में कई प्रजातियां भी नष्ट हो गयी। मानव-प्रेरित पर्यावरणीय परिवर्तन जैव विविधता को कम करते हैं जिसके परिणामस्वरूप वैक्टर या रोगजनकों के लिए नई परिस्थितियाँ बनती हैं।ऐसे में वन्यजीवों से इन रोगकारकों का मानव में स्थानांतरण होना काफी सहज हो जाता है।

. चीन और कुछ एशियाई देशों में वन्य जीव बाज़ार की उपस्थिति

ऐसे कयास हैं कि कोरोना वायरस चीन के वुहान में स्थित किसी वन्यजीव बाज़ार में उपस्थित वन्यजीव से मानव में स्थानान्तरित हुआ है।

. वन्य जीवों का गैर कानूनी व्यापार और तस्करी

एशियाई देशों में पारम्परिक चीनी औषधियों की बहुत ही मांग है। इन औषधियों के निर्माण के लिए विभिन्न वन्यजीवों के शरीर के विभिन्न हिस्से काम में लिए जाते हैं। अतः भारत सहित बहुत से देशों में गैर कानूनी ढंग से वन्यजीवों का शिकार करके उनके शरीर हिस्सों का गैर कानूनी व्यापार होता है और विदेशों को तस्करी की जाती है। यह एक संगठित अपराध बन चुका है ;जिसमें कई लोग शामिल होते हैं।

जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर IPBES वैश्विक मूल्यांकन रिपोर्ट के अनुसार मानव द्वारा बड़े पैमाने पर किये जा रहे प्राकृतिक आवासों के अतिक्रमण ने जैव विविधता को तेज़ी से नष्ट किया है। प्रकृति के नाजुक संतुलन को बिगाड़कर, हमने जानवरों से मनुष्यों में वायरस के प्रसार के लिए आदर्श स्थिति का निर्माण कर दिया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि कोरोना जैसी महामारी के उद्भव तथा जैव विविधता नष्ट होने एवं वन्यजीव व्यापार के मध्य मजबूत संबंध हैं।

आगे की राह

कोरोना महामारी के संक्रमण की गति को कम करने के लिए विश्व के अधिकाँश देशों ने लॉक डाउन का सहारा लिया। लॉक डाउन के कारण मानव अपने आवासों में बंद रहने के विवश हुआ और इसका सकारात्मक परिणाम वन और वन्य जीवों पर देखने को मिला। इस महामारी ने वैश्विक समुदाय को आत्मनिरीक्षण का अवसर दिया है ताकि हम प्रकृति पर अपने अवैज्ञानिक कार्यों के परिणामों को जान सके और अपने व्यवहार में परिवर्तन लाएं। भविष्य के लिए निम्न सुझावों पर काम किया जा सकता है।

. जैव विविधता विज़न 2050 "प्रकृति के साथ सामंजस्य बैठाते हुए जीना "('Living in Harmony with Nature’ ) को प्राप्त करने के लिए सभी राष्ट्रों को मिल जुलकर कार्य करना होगा।
. हमें 'एक स्वास्थ्य ( One Health )' उपागम को अपनाना होगा जो कि पर्यावरण ,वन्य और पालतू जीव,मानव सभी के स्वास्थ्य पर विचार करता है। किसी के भी स्वास्थ्य को नुक्सान नहीं पहुंचे।
. वन्य जीवों के गैर कानूनी व्यापार को रोकने वाले विभिन्न अभिसमयों ,संधियों यथा CITES ,TRAFFIC आदि का कठोर क्रियान्वयन।
4. हरित नौकरियों को प्रोत्साहित किया जाए ताकि लोगों की आजीविका के साथ -साथ पर्यावरण को भी संरक्षित किया जा सके।
. ऐसा कोई संकट दोबारा न आये इसलिए भारत को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम ,1972 में वर्णित सभी 1800 प्रजातियों के गैर कानूनी व्यापार को प्रतिबंधित करना होगा। लोगों को जैव विविधता और उसके महत्व के बारे में जानकारी देने मिशन मोड में काम करना होगा।

पारिस्थितिक तंत्र की अखंडता बीमारियों को नियंत्रित करेगी और रोगजनकों के एक प्रजाति से दूसरी प्रजाति में संचरण को सीमित करेगी।

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