विदेशों में भारतीय छात्रों पर नस्लभेदी हमले ,
न जाने क्यूँ हम भारतीयों को झिंझोड़ देता है।
लेकिन टीवी पर गोरा बनाने वाली क्रीम का विज्ञापन ,
कैसी वधू चाहिए का अखबारों में वैवाहिक विज्ञापन ,
न जाने क्यूँ चुपचाप जीवन का हिस्सा बन जाता है।
काले वर्ण वाले मनुष्य को कह देते हैं हब्शी ,
अपने पूर्वाग्रह से ग्रस्त अपराधी मानकर बनाते हैं दूरी ,
न जाने क्यूँ वर्ण चरित्र का प्रमाण बन जाता है।
सीता ही नहीं द्रौपदी भी थी श्याम वर्णा ,
हमारे तो नटखट कृष्ण भी थे श्यामा ,
न जाने क्यूँ श्यामली तनुजा कोई नहीं चाहता है।
काला गुलाब तो माना जाता है बड़ा ही दुर्लभ
,
वहीँ काला ब्लैक बोर्ड बन जाता है विद्या दान का माध्यम ,
न जाने क्यूँ काला काली शब्द कमी का बोध कराता है।
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