पहाड़ों से निकलकर ,इठलाती, इतराती सागर में जाकर मिल जाने वाली नदी सी हूँ मैं।
लहरें छूकर जिसे गुजरे ,बीच सागर में निर्विकार ,तटस्थ ,उदासीन,अचल द्वीप से हो तुम।।
आँखों में हमेशा सुख दुःख के साथ रहने वाली आंसूओं सी हूँ मैं ।
आँखों में रहकर सुबह होते ही नष्ट हो जाने वाले स्वपन से हो तुम ।।
हाथों में चमकने वाली सदा साथ ही रहने वाली लकीरों सी हूँ मैं ।
हाथों में न रुकने वाली फिसलती रेत से हो तुम ।।
मेरे साथ मेरी सी, तुम्हारे साथ तुम्हारी सी हो जाने वाली हूँ मैं ।
अपने साथ अपने से ,मेरे साथ तुम्हारे से हो जाने वाले हो तुम ।।
लहरें छूकर जिसे गुजरे ,बीच सागर में निर्विकार ,तटस्थ ,उदासीन,अचल द्वीप से हो तुम।।
आँखों में हमेशा सुख दुःख के साथ रहने वाली आंसूओं सी हूँ मैं ।
आँखों में रहकर सुबह होते ही नष्ट हो जाने वाले स्वपन से हो तुम ।।
हाथों में चमकने वाली सदा साथ ही रहने वाली लकीरों सी हूँ मैं ।
हाथों में न रुकने वाली फिसलती रेत से हो तुम ।।
मेरे साथ मेरी सी, तुम्हारे साथ तुम्हारी सी हो जाने वाली हूँ मैं ।
अपने साथ अपने से ,मेरे साथ तुम्हारे से हो जाने वाले हो तुम ।।
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