Monday 27 July 2020

दादाभाई नौरोजी (Source Indian Express)


प्रश्न : दादाभाई नौरोजी के आधुनिक भारत के निर्माण में किये गए योगदानों पर चर्चा कीजिये। (Source :Indian express)

उत्तर :दादा भाई नौरोजी आधुनिक भारत के पहले आर्थिक चिंतक थे;ब्रिटिश संसद के लिए चुने जाने वाले पहले भारतीय थे और वह पहले नेता थे ;जिन्होंने स्वराज प्राप्ति को कांग्रेस के लक्ष्य के रूप में स्थापित किया था।

भारत के वयोवृद्ध नेता ने अपने धर्म ,जाति,नस्ल ,भाषा आदि की पहचानों से ऊपर भारतीयता को तरजीह दी थी। उनका कहना था कि मैं सबसे पहले भारतीय हूँ। आज के राजनीतिक परिदृश्य में दादा भाई नौरोजी के राष्ट्रवाद की प्रासंगकिता और बढ़ गयी है।

उन्होंने हमेशा समावेशी विकास ,समावेशी शासन और समावेशी राष्ट्रवाद की स्थापना के प्रयास किये। उन्होंने अल्पसंख्यकों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए प्रयत्न किये। उन्होंने एक मुस्लिम व्यक्ति के सहयोग से अर्थव्यवस्था संबंधी आंकड़े संग्रहित किये जिनके आधार पर उन्होंने भारत का पहली बार आर्थिक इतिहास लिखा और धन निष्कासन का सिद्वान्त दिया। उनके सिद्धांत के आधार पर भारतीय अपने आर्थिक हितों को सुनिश्चित करने के लिए एक समान दुश्मन अंग्रेजों के प्रति संगठित हुए।

उन्होंने अल्पसंख्यकों के समावेशन की बात किसी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की हितों की पूर्ति के लिए नहीं की थी ;बल्कि वे अपने देश के बारे में एक आधारभूत सत्य अच्छे से समझ गए थे कि ,"भारत सर्वश्रेष्ठ तब ही कर सकता है ;जब वह सबको साथ मिलाकर करता है। "

दादा भाई नौरोजी ब्रिटेन असेंबली में चुने जाने के बाद भारत लौटे ,उन्हें पूरे भारत की जनता से प्यार और सम्मान मिला। भारतियों ने यह साबित कर दिया था कि भारत का प्रतिनिधित्व करने वाला हर व्यक्ति पहले भारतीय है। बाल गंगाधर तिलक के मराठा अखबार ने लिखा था कि ,"दादाभाई सम्पूर्ण भारत के वास्तविक प्रतिनिधि हैं। "

दादाभाई नौरोजी ने सहिष्णुता की भावना को पोषित किया और उसके आधार पर भारतीय राष्ट्रवाद की नींव रखी।

दादाभाई की कुछ सीमाएं भी रही :
.उन्होंने छुआछूत की तरफ ज़रा भी ध्यान नहीं दिया ;इस अमानवीय अभ्यास के प्रति वे उदासीन रहे।
. उनके आर्थिक राष्ट्रवाद में विदेशी सामान का बहिष्कार और स्वदेशी का उपयोग जैसी संकल्पनाएं नहीं थी। यह उन्हें असंवैधानिक लगता था।

दादाभाई खुले मस्तिष्क वाले ,उदारवादी ,प्रगतिशील और अपनी आलोचना का स्वागत करने वाले व्यक्ति थे। वह अपने विचारों की सीमाएं जानकार उनमें परिवर्तन के लिए तैयार हो जाते और समय के साथ नए विचारों को अपना लेते।

वह आज की बौद्धिकता विरोधी ,संकीर्ण और बंद मानसिकता वाले नेतृत्व को देखकर परेशान होते। वह अति बहुमत की उपस्थिति को देखकर अधिक परेशान होते।



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