Wednesday 12 August 2020

कोरोना संकट और वस्तु एवं सेवा कर (GST) विवाद

 प्रश्न :कोरोना संकट के कारण वस्तु और सेवा कर संग्रह में आयी कमी के कारण केंद्र और राज्य में कर वितरण को लेकर विवाद हो रहा है। राज्यों को इस कर के लागू होने से हो रहे राजस्व नुक्सान को रोकने के लिए किये गए प्रावधानों की चर्चा करते हुए विवाद सुलझाने के लिए सुझाव दीजिये। 


उत्तर : राज्यों को होने वाले नुक्सान की क्षतिपूर्ति के लिए यह प्रावधान किये गए थे कि आने वाले 5 वर्षों तक राज्य को राजस्व का जितना भी नुक्सान होगा ,उसकी क्षतिपूर्ति केंद्र द्वारा एक क्षतिपूर्ति निधि द्वारा की जायेगी। यह माना गया था कि 2015 -16 वित्तीय वर्ष की तुलना में  राज्यों के राजस्व में प्रति वर्ष 14 %की वृद्धि होगी। यदि 14 % की वृद्धि नहीं होती है तो ,केंद्र जितना राजस्व कम प्राप्त हो रहा है ;उसकी क्षतिपूर्ति करेगा। 


क्षतिपूर्ति निधि के लिए एक अतिरिक्त सेस कुछ वस्तुओं (पान मसाला, सिगरेट और तंबाकू उत्पाद, वातित पानी, कैफीनयुक्त पेय पदार्थ, कोयला और कुछ यात्री मोटर वाहन ) पर लगाया जाएगा और उससे संगृहीत राजस्व क्षतिपूर्ति निधि  का हिस्सा होगा। 


अर्थव्यवस्था की धीमी रफ़्तार के कारण इस वर्ष क्षतिपूर्ति निधि में संगृहीत राजस्व राज्यों को आवश्यक क्षतिपूर्ति की तुलना में कम है। केंद्र सरकार पांच साल के लिए राजस्व के नुकसान की भरपाई के लिए संवैधानिक रूप से बाध्य है।


राज्यों और केंद्र के बीच उत्पन्न इस विवाद को सुलझाने के संभावित उपाय 


1 .पांच साल की गारंटी की अवधि को तीन साल तक करने के लिए संविधान में संशोधन किया जा सकता है। ऐसा करना मुश्किल होगा क्योंकि अधिकांश राज्य इस प्रस्ताव से सहमत होने से हिचकेंगे। इसे राज्यों को किए गए वादे पर वापस जाने के रूप में भी देखा जा सकता है जब वे अपने करों को जीएसटी में शामिल करने के लिए सहमत हुए।


2 . केंद्र सरकार अपने स्वयं के राजस्व स्त्रोतों से इस कमी को  पूरा कर  सकती है। राज्यों को इस प्रस्ताव से कोई आपत्ति नहीं होगी । इस आर्थिक संकट के कारण  केन्द्र सरकार के कर संग्रह में कमी आएगी।आर्थिक और स्वास्थ्य संकट के प्रबंधन के लिए केंद्र सरकार को अतिरिक्त व्यय भी करना है। अतः केंद्र राज्यों को और समर्थन देने की स्थिति में नहीं हो सकता है।


3 . केंद्र क्षतिपूर्ति निधि (कंपनसेशन फण्ड ) से उधार ले सकता है।इस अतिरिक्त सेस के संग्रह की अवधि को पांच साल से आगे बढ़ाया जा सकता है जब तक कि कंपनसेशन फण्ड से लिए  गए ऋण और उस पर ब्याज का भुगतान पूर्ण नहीं हो जाता। 


4 . केंद्र राज्यों को समझा सकता है कि 14% विकास लक्ष्य हमेशा से ही अवास्तविक था। लक्ष्य को नॉमिनल जीडीपी वृद्धि से जोड़ा जाना चाहिए था। यदि केंद्र जीएसटी परिषद के माध्यम से राज्यों आश्वस्त करके कर स्तर को रीसेट करने के लिए बातचीत कर सकता है, तो वह 2017 अधिनियम में संशोधन करने के लिए संसद में एक विधेयक भी ला सकता है।



संविधान केंद्र के लिए यह अनिवार्य करता है कि अगर राज्यों के कर संग्रह में कमी आती है तो केंद्र उसकी क्षतिपूर्ति करेगा।इस उद्देश्य के लिए लगाया गया  सेस  पर्याप्त  नहीं होगा।जीएसटी परिषद, जो केंद्र और सभी राज्यों के प्रतिनिधित्व के साथ एक संवैधानिक निकाय है, को एक व्यावहारिक समाधान खोजना होगा। 




Tuesday 11 August 2020

चीन को क़्वारण्टीन करना अभी भी दूर की कौड़ी है (Source The Hindu)

 

प्रश्न : भू -संतुलन चीन को नुक्सान नहीं पंहुचा रहा है। भारत को चीन के साथ संबंधों की रणनीति इस बात को ध्यान में रखकर बनानी होगी। इस कथन पर चर्चा कीजिये। (Source:The Hindu)


उत्तर : हमेशा से ही आक्रामक और प्रसारवादी चीन को क़्वारण्टीन करना अभी भी दूर की कौड़ी है क्यूंकि चीन एक आर्थिक ताकत है। आज के दौर में आर्थिक संबंध सैनिक और रणनीतिक संबधों से ज्यादा महत्वपूर्ण साबित हो रहे हैं। यह बात चीन भी अच्छे से जानता है और भारत को भी यह समझ लेना चाहिए।


1. चीन आसियान देशों का सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है ;जबकि कई आसियान देशों से चीन के सीमा विवाद हैं तथा कई देशों के क्षेत्रों पर चीन ने अधिकार कर रखा है।


2. चीन की शक्ति को संतुलित करने के लिए बनाये गए संगठन ( Quad ) जिसमें अमेरिका ,ऑस्ट्रेलिया ,जापान और भारत सदस्य देश हैं। ऑस्ट्रेलिया ने स्पष्ट कर दिया है कि उसके आर्थिक हितों के लिए चीन महत्वपूर्ण है ;अतः वह अपने हितों के विरुद्ध कुछ नहीं करेगा। ऑस्ट्रेलिया और चीन के संबंधों में भी आर्थिक तत्व अधिक महत्वपूर्ण है।


3 . चीन की हुवै कंपनी के 5 G प्रोजेक्ट को समाप्त करने के बाद भी यूके के विदेश मंत्री ने कहा है कि यूके के लिए चीन महत्वपूर्ण है और यूके चीन के साथ सकारात्मक संबंध बनाने की कोशिश करेगा।


4 . चीन और भारत के विवाद लेते हुए हाल ही पाकिस्तान ने जम्मू -कश्मीर ,गुजरात और सियाचिन के कुछ हिस्सों नक़्शे दिखाया और नेपाल ने कालापानी क्षेत्र को।

5 .चीन अपने चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) का विस्तार अफगानिस्तान तक करने की योजना पर कार्य कर रहा है।


6. ईरान के चाबहार परियोजना में भी चीन के निवेश करने के संभावना है।


अतः चीन की विस्तारवादी नीतियों के बाद भी कोई भी देश खुलकर न तो चीन का विरोध कर रहा है और न ही चीन के साथ आर्थिक संबंधों को तोड़ रहा है। अतः भारत को भी इस वास्तविकता के मद्देनज़र ही अपनी रणनीति का निर्माण करना होगा।

Monday 10 August 2020

भारत अमेरिका द्विपक्षीय संबंधों में बदलाव (Source The Hindu)

 

प्रश्न :वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में भारत को अमेरिका के साथ अपने संबंधों में बदलाव लाने होंगे ताकि भारत अपने राष्ट्रीय हितों की पूर्ति कर सके। इस कथन पर चर्चा कीजिये। ( Source:The Hindu )


उत्तर भारत को अमेरिका के साथ द्विपक्षीय संबंध इस विश्वास के आधार पर बनाने होंगे कि अमेरिका जितना भारत को देगा ,भारत भी उतना ही अमेरिका को देगा और भारत को हर मामले में अमेरिका की सलाह नहीं चाहिए।


भारत अमेरिका के साथ अपने संबंधों को निम्न बिंदुओं पर पुनः पारिभाषित कर सकता है


1 .दोनों ही पक्षों को यह समझ लेना चाहिये कि आपसी संबंध एक हाथ से लो और दूसरे हाथ से दो पर आधारित हों।


2 . लद्दाख में चीन के विरुध्द भारत को अमेरिका के अति उन्नत सैनिक उपकरणों की जरूरत है। भारत अमेरिका से यह नहीं चाहता कि अमेरिका भारत की तरफ से चीन से लद्दाख में युद्ध करे ,लेकिन उपकरणों के स्तर पर अमेरिका की सहायता मांगी जा सकती है। अमेरिका पूर्व में भारत के विरुद्ध पाकिस्तान को सहायता दे चुका है।


3. भारत अफगानिस्तान में अमेरिका की सहायता के लिए अपनी सैनिक टुकड़ी भेज सकता है। इससे पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद कमजोर होगा ;साथ ही चीन से युद्ध की स्थिति में भारत अमेरिका से अपनी शर्तों पर बातचीत कर सकेगा।


4 . भारत को अमेरिका और उसके सहयोगी इस्रायल की चीन से होने वाले संभावित साइबर युद्ध के लिए सहयोग की जरूरत है। भारत को चीन और पाकिस्तान की सेटेलाइट मैपिंग ,आतंकवादियों पर ख़ुफ़िया सूचना ,इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के जरिये होने वाले संवादों को पकड़ना ,पाकिस्तान की सेना और आईएसआई पर नियंत्रण के लिए दोनों देशों से सहयोग लेना होगा।


5. अण्डमान -निकोबार और लक्षद्वीप को वायु सेना बेस और जल सेना बेस के रूप में विकसित करने के लिए अमेरिका से सहयोग लेना होगा ताकि भारत हिन्द महासागर में अपनी स्थिति मजबूत बनाये रख सके।


6 . भारत को दो क्षेत्रों को एक हाथ से लेना और दूसरे हाथ से देना से अलग रखना होगा और इस संबंध में दृढ़ होना होगा। एक, आर्थिक संबंध व्यापक आर्थिक सिद्धांतों पर आधारित होने चाहिए।दूसरा , अमेरिकी विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) का मुक्त, अंधाधुंध प्रवाह भारत के राष्ट्रीय हित में नहीं है।भारत को अमेरिका से थोरियम के उपयोग ,खारे मीठा करने जैसी तकनीकी की आवश्यकता है ;लेकिन भारत वालमार्ट आदि को भारत में मुक्त रूप से अपने देश के लोगों की रोज़गार जरूरतों को देखते हुए निवेश की अनुमति नहीं दे सकता।


7. अमेरिका भारत के कृषि उत्पादों के आयात की अनुमति दे।


8 . तुलनात्मक लाभ के सिद्धांतों के अनुसार ही अमेरिका से भारत के चुनिंदा क्षेत्रों में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति होनी चाहिए।


9 . दोनों ही देश धीरे-धीरे अपने तर्रीफ़ शुल्कों में कमी लाये।


10 .अमेरिका को डॉलर के मूल्य में कमी लानी होगी ताकि धीरे- धीरे एक डॉलर की कीमत 35 /- तक हो जाए। जैसे -जैसे अर्थव्यवस्था का विस्तार हो डॉलर १० रूपये से भी कम का हो जाना चाहिए।


11 .भारत को तिब्बत में प्रवेश के लिए कभी भी अपनी सेनाएं अमेरिका को नहीं देनी चाहिए। हांगकांग और ताइवान मुद्दों पर भी भारत को कभी भी अमेरिका का अनुसरण नहीं करना चाहिए।


तिब्बत के मामले में भारत 1954 और 2003 में पहले से ही दो संधियाँ चीन के साथ कर चुका है।



भारत, अमेरिका और चीन को विश्व में शांति के लिए एक त्रिपक्षीय प्रतिबद्धता बनानी चाहिए, बशर्ते चीन अपनी वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय नीतियों में स्वस्थ बदलाव लाये।

लड़कियों की विवाह योग्य आयु में बदलाव

 

प्रश्न :लड़कियों की विवाह योग्य आयु बढ़ाने के लिए कानून में संशोधन एक अच्छा सुझाव है। लेकिन सिर्फ कानून ही नहीं ;उससे कहीं अधिक किये जाने की जरूरत है। इस कथन के परिप्रेक्ष्य में लड़कियों की जल्दी शादी किये जाने के कारणों और इसे रोकने के उपायों पर चर्चा कीजिये।


उत्तर :भारत में अभी लड़कियों के लिए विवाह योग्य आयु 18 वर्ष है ,इसे बढ़ाकर 21 वर्ष करने के लिए एक प्रस्ताव विचारधीन है। सरकार का मानना है कि विवाह योग्य आयु बढ़ने से मातृत्व मृत्यु दर में भी कमी आएगी और लड़कियों के शिक्षा प्राप्त करने के प्रयासों में वृद्धि होगी। निसंदेह सरकार की नीयत महिलाओं को सशक्त करने की है ,लेकिन कानून इस समस्या का पूर्ण समाधान नहीं है। कानून तो अभी भी अस्तित्व में है ;लेकिन चोरी -छिपे बाल विवाह भारत में हो रहे हैं।


बाल विवाह के कारण


1. गरीबी : संतान का पालन पोषण करने में अक्षम होने के कारण लड़की का विवाह शीघ्र करना चाहते हैं। विवाह की आयु बढ़ने पर दहेज़ में भी वृद्धि होने के संभावना होती है।


2. शिक्षा और रोज़गार के सीमित अवसर : सुरक्षा और गरीबी दोनों ही कारणों से लड़कियों को घर से दूर शिक्षा के लिए भेजना संभव नहीं हो पाता। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षित लड़कियों के लिए पर्याप्त रोज़गार के अवसर उपलब्ध नहीं होते। लड़कियों को पढ़ाई में निवेश लाभदायक नहीं समझा जाता।


3 .लड़कियों को जिम्मेदारी के रूप में देखना : लड़कियों की पढ़ाई में किये गए निवेश का लाभ दूसरे परिवार को मिलेगा। पढ़ी -लिखी लड़की के विवाह के लिए और भी अधिक दहेज़ देना होगा। इस मानसिकता के चलते लड़कियों को पढ़ाया नहीं जाता और इसलिए उनका विवाह शीघ्र कर दिया जाता है।


4 .विकल्पों का अभाव : पढ़ाई के अतिरिक्त अन्य करियर विकल्पों की अत्यंत कमी के कारण लड़कियों की जल्दी शादी कर दी जाती है।


5 .सामाजिक दबाव : परिवार की मर्यादा लड़कियों से ही जुड़ी हुई होती है। इसलिए परिवार की मर्यादा को कोई खतरा उत्पन्न न हो इसलिए भी उनकी जल्दी शादी कर दी जाती है।


बाल विवाह को रोकने के लिए सुझाव


  1. शिक्षा के अधिकार का विस्तार : 12th तक की शिक्षा प्राप्त करना सभी का अधिकार हो। जिससे निकटवर्ती क्षेत्रों में शिक्षा के लिए आवश्यक आधारभूत संरचना और स्कूलों का विस्तार किया जा सके।

  1. लड़को और लड़कियों को सेक्स एजुकेशन प्रदान की जाए ताकि वह सुरक्षित रह सकें।

3. कौशल विकास और प्रशिक्षण

ग्रामीण क्षेत्रों में कौशल विकास केंद्र स्थापित कर लड़कियों को नियोजनीय शिक्षा प्रदान की जाए। साथ ही आसपास के क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर उत्पन्न किये जाएँ ताकि लड़कियों की शिक्षा में निवेश को लाभदायक समझा जाए। हाल ही आईटी क्षेत्र की कंपनी जोहो ने अपना डेवलपमेंट सेंटर तमिलनाडु के एक ग्रामीण क्षेत्र में खोला है।



4 .विवाह योग्य आयु बढ़ाये जाने के साथ -साथ उन्हें गर्भनिरोधकों और सुरक्षित सेक्स के बारे में जानकारी प्रदान की जाए ताकि जब भी वह मानसिक रूप से बच्चे के लिए तैयार हों ,तब ही माँ बने। इससे माँ और बच्चे दोनों का स्वास्थ्य बेहतर होगा।


5 .कार्यस्थलों पर विशाखा गाइडलाइन्स का अनुसरण सुनिश्चित किया जाए।


6. ऐसे कानूनों से बचा जाए जो अपनी मर्ज़ी से विवाह करने वाले युवक और युवती को परेशान करने का सबब बनते हैं।


अतः विवाह की आयु बढ़ने से लड़कियों की शिक्षा और रोज़गार पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेंगे। लेकिन इसके साथ अन्य उपायों को भी अपनाना होगा तभी आधी आबादी को संसाधन से पूँजी में परिवर्तित करना संभव होगा।

Wednesday 29 July 2020

पर्यावरण और कोरोना (Source The Hindu 30th July)


प्रश्न :हमें प्रकृति के साथ अपने संबंधों पर एक बार फिर से विचार करते हुए एक ऐसे विश्व का पुनःनिर्माण करना है जो की पर्यावरण के प्रति पूर्णरूपेण जिम्मेदार हो। हाल ही सर्वव्यापी महामारी कोरोना के मद्देनज़र इस कथन का विश्लेषण कीजिये।(Source :The Hindu)

उत्तर : आज सम्पूर्ण विश्व कोरोना महामारी का सामना कर रहा है।ऐसे कयास हैं की कोरोना जानवरों से मानवों में स्थानांतरित हुआ है। कोरोना के अलावा इबोला ,नेफा ,बर्ड फ्लू ,स्वाइन फ्लू ,सार्स आदि ऐसी कई संक्रामक बीमारियां हैं जिनके रोगकारक वन्य जीवों से मानवों में स्थानान्तरित हुए हैं। मानव और वन्यजीवों के मध्य बढ़ता निकट संपर्क इसका एक कारण है।

मानव और वन्य जीवों के मध्य संपर्क बढ़ने के निम्न कारण हैं :-

. जंगलों और अन्य पर्यावासों का नष्ट होना

मानव ने अपने विकास की अंधी दौड़ में कृषि और औधोगिक गतिविधियों के लिए आवश्यक भूमि प्राप्त करने के लिए वन्य जीवों के पर्यावासों और जंगलों को तेज़ी से नष्ट कर दिया है। अतः मानवीय बस्तियों में वन्यजीवों का प्रवेश मानव और वन्यजीवों के निकट संपर्क में वृद्धि करता है।

. जैव विविधता का नष्ट होना

पर्यावासों के नष्ट होने की प्रक्रिया में कई प्रजातियां भी नष्ट हो गयी। मानव-प्रेरित पर्यावरणीय परिवर्तन जैव विविधता को कम करते हैं जिसके परिणामस्वरूप वैक्टर या रोगजनकों के लिए नई परिस्थितियाँ बनती हैं।ऐसे में वन्यजीवों से इन रोगकारकों का मानव में स्थानांतरण होना काफी सहज हो जाता है।

. चीन और कुछ एशियाई देशों में वन्य जीव बाज़ार की उपस्थिति

ऐसे कयास हैं कि कोरोना वायरस चीन के वुहान में स्थित किसी वन्यजीव बाज़ार में उपस्थित वन्यजीव से मानव में स्थानान्तरित हुआ है।

. वन्य जीवों का गैर कानूनी व्यापार और तस्करी

एशियाई देशों में पारम्परिक चीनी औषधियों की बहुत ही मांग है। इन औषधियों के निर्माण के लिए विभिन्न वन्यजीवों के शरीर के विभिन्न हिस्से काम में लिए जाते हैं। अतः भारत सहित बहुत से देशों में गैर कानूनी ढंग से वन्यजीवों का शिकार करके उनके शरीर हिस्सों का गैर कानूनी व्यापार होता है और विदेशों को तस्करी की जाती है। यह एक संगठित अपराध बन चुका है ;जिसमें कई लोग शामिल होते हैं।

जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर IPBES वैश्विक मूल्यांकन रिपोर्ट के अनुसार मानव द्वारा बड़े पैमाने पर किये जा रहे प्राकृतिक आवासों के अतिक्रमण ने जैव विविधता को तेज़ी से नष्ट किया है। प्रकृति के नाजुक संतुलन को बिगाड़कर, हमने जानवरों से मनुष्यों में वायरस के प्रसार के लिए आदर्श स्थिति का निर्माण कर दिया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि कोरोना जैसी महामारी के उद्भव तथा जैव विविधता नष्ट होने एवं वन्यजीव व्यापार के मध्य मजबूत संबंध हैं।

आगे की राह

कोरोना महामारी के संक्रमण की गति को कम करने के लिए विश्व के अधिकाँश देशों ने लॉक डाउन का सहारा लिया। लॉक डाउन के कारण मानव अपने आवासों में बंद रहने के विवश हुआ और इसका सकारात्मक परिणाम वन और वन्य जीवों पर देखने को मिला। इस महामारी ने वैश्विक समुदाय को आत्मनिरीक्षण का अवसर दिया है ताकि हम प्रकृति पर अपने अवैज्ञानिक कार्यों के परिणामों को जान सके और अपने व्यवहार में परिवर्तन लाएं। भविष्य के लिए निम्न सुझावों पर काम किया जा सकता है।

. जैव विविधता विज़न 2050 "प्रकृति के साथ सामंजस्य बैठाते हुए जीना "('Living in Harmony with Nature’ ) को प्राप्त करने के लिए सभी राष्ट्रों को मिल जुलकर कार्य करना होगा।
. हमें 'एक स्वास्थ्य ( One Health )' उपागम को अपनाना होगा जो कि पर्यावरण ,वन्य और पालतू जीव,मानव सभी के स्वास्थ्य पर विचार करता है। किसी के भी स्वास्थ्य को नुक्सान नहीं पहुंचे।
. वन्य जीवों के गैर कानूनी व्यापार को रोकने वाले विभिन्न अभिसमयों ,संधियों यथा CITES ,TRAFFIC आदि का कठोर क्रियान्वयन।
4. हरित नौकरियों को प्रोत्साहित किया जाए ताकि लोगों की आजीविका के साथ -साथ पर्यावरण को भी संरक्षित किया जा सके।
. ऐसा कोई संकट दोबारा न आये इसलिए भारत को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम ,1972 में वर्णित सभी 1800 प्रजातियों के गैर कानूनी व्यापार को प्रतिबंधित करना होगा। लोगों को जैव विविधता और उसके महत्व के बारे में जानकारी देने मिशन मोड में काम करना होगा।

पारिस्थितिक तंत्र की अखंडता बीमारियों को नियंत्रित करेगी और रोगजनकों के एक प्रजाति से दूसरी प्रजाति में संचरण को सीमित करेगी।

Monday 27 July 2020

ऑफलाइन शिक्षा बनाम ऑनलाइन शिक्षा (Source Indian expree ,Hindu,hinduatan times )

प्रश्न :भविष्य के लिए हमें वास्तविक और आभासी दोनों ही क्लासरूम पर आधारित शिक्षा प्रणाली विकसित करनी होगी। वर्तमान परिदृश्य के सन्दर्भ में ऑनलाइन शिक्षा के लाभों के साथ -साथ उसकी सीमाओं पर चर्चा कीजिये।

उत्तर :ऑनलाइन शिक्षा ,टेली -एजुकेशन एकदम नयी संकल्पना नहीं है ,वास्तविक क्लासरूम शिक्षा के साथ -साथ पहुंच में वृद्धि के लिए पूरक के रूप में ऑनलाइन शिक्षा पहले से ही विध्यमान थी। महामारी के कारण शैक्षणिक संस्थान विद्यार्थियों के लिए बंद है ,अतः ऑफलाइन शिक्षा का स्थान ऑनलाइन शिक्षा ने ले लिया है।

ऑनलाइन शिक्षा के लाभ
१. पहुंच में वृद्धि :एक इंटरनेट कनेक्शन और मोबाइल उपकरण की मदद से आप विश्व भर की जानकारियां ,सीखने की सामग्री प्राप्त कर सकते हैं।
२.विविधता : आप विविध क्षेत्रों की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। विविध क्षेत्रों का प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते हैं।
३. घर पर रहकर सीखना : घर के सुरक्षित और आरामदेह वातावरण में सीखने का एक अवसर उन बच्चों के लिए नए मार्ग खोजता है जो कई पारिवारिक कारणों से स्कूल और कॉलेज नहीं जा पाते।

ऑनलाइन शिक्षा की सीमाएं :

१. तकनिकी की अनुपलब्धता : इंटरनेट कनेक्शन का उपलब्ध न होना या सही तरीके से कार्य न करना कई बार सीखने की प्रक्रिया में बड़ी बाधा बनता है।
२. घर पर पढ़ाई के लिए स्थान उपलब्ध न होना : घर पर क्लासरूम जैसा वातावरण कई बार उपलब्ध नहीं होता है।
३.स्क्रीन पर बहुत समय व्यतीत करने से स्वास्थय पर दुष्प्रभाव।
४. शिक्षा का उद्देश्य सिखाने के साथ -साथ लोगों के साथ संवाद स्थापित करना ,समूह में रहना आदि कौशल विकसित करना भी है। ऑनलाइन शिक्षा  सॉफ्ट स्किल्स और सोशल स्किल्स को  विकसित नहीं कर पाती है।

अतः महामारी को ध्यान में रखते हुए हमें ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों ही शिक्षा प्रणालियों को मिलाते हुए शिक्षा का मॉडल विकसित करना होगा। 

दादाभाई नौरोजी (Source Indian Express)


प्रश्न : दादाभाई नौरोजी के आधुनिक भारत के निर्माण में किये गए योगदानों पर चर्चा कीजिये। (Source :Indian express)

उत्तर :दादा भाई नौरोजी आधुनिक भारत के पहले आर्थिक चिंतक थे;ब्रिटिश संसद के लिए चुने जाने वाले पहले भारतीय थे और वह पहले नेता थे ;जिन्होंने स्वराज प्राप्ति को कांग्रेस के लक्ष्य के रूप में स्थापित किया था।

भारत के वयोवृद्ध नेता ने अपने धर्म ,जाति,नस्ल ,भाषा आदि की पहचानों से ऊपर भारतीयता को तरजीह दी थी। उनका कहना था कि मैं सबसे पहले भारतीय हूँ। आज के राजनीतिक परिदृश्य में दादा भाई नौरोजी के राष्ट्रवाद की प्रासंगकिता और बढ़ गयी है।

उन्होंने हमेशा समावेशी विकास ,समावेशी शासन और समावेशी राष्ट्रवाद की स्थापना के प्रयास किये। उन्होंने अल्पसंख्यकों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए प्रयत्न किये। उन्होंने एक मुस्लिम व्यक्ति के सहयोग से अर्थव्यवस्था संबंधी आंकड़े संग्रहित किये जिनके आधार पर उन्होंने भारत का पहली बार आर्थिक इतिहास लिखा और धन निष्कासन का सिद्वान्त दिया। उनके सिद्धांत के आधार पर भारतीय अपने आर्थिक हितों को सुनिश्चित करने के लिए एक समान दुश्मन अंग्रेजों के प्रति संगठित हुए।

उन्होंने अल्पसंख्यकों के समावेशन की बात किसी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की हितों की पूर्ति के लिए नहीं की थी ;बल्कि वे अपने देश के बारे में एक आधारभूत सत्य अच्छे से समझ गए थे कि ,"भारत सर्वश्रेष्ठ तब ही कर सकता है ;जब वह सबको साथ मिलाकर करता है। "

दादा भाई नौरोजी ब्रिटेन असेंबली में चुने जाने के बाद भारत लौटे ,उन्हें पूरे भारत की जनता से प्यार और सम्मान मिला। भारतियों ने यह साबित कर दिया था कि भारत का प्रतिनिधित्व करने वाला हर व्यक्ति पहले भारतीय है। बाल गंगाधर तिलक के मराठा अखबार ने लिखा था कि ,"दादाभाई सम्पूर्ण भारत के वास्तविक प्रतिनिधि हैं। "

दादाभाई नौरोजी ने सहिष्णुता की भावना को पोषित किया और उसके आधार पर भारतीय राष्ट्रवाद की नींव रखी।

दादाभाई की कुछ सीमाएं भी रही :
.उन्होंने छुआछूत की तरफ ज़रा भी ध्यान नहीं दिया ;इस अमानवीय अभ्यास के प्रति वे उदासीन रहे।
. उनके आर्थिक राष्ट्रवाद में विदेशी सामान का बहिष्कार और स्वदेशी का उपयोग जैसी संकल्पनाएं नहीं थी। यह उन्हें असंवैधानिक लगता था।

दादाभाई खुले मस्तिष्क वाले ,उदारवादी ,प्रगतिशील और अपनी आलोचना का स्वागत करने वाले व्यक्ति थे। वह अपने विचारों की सीमाएं जानकार उनमें परिवर्तन के लिए तैयार हो जाते और समय के साथ नए विचारों को अपना लेते।

वह आज की बौद्धिकता विरोधी ,संकीर्ण और बंद मानसिकता वाले नेतृत्व को देखकर परेशान होते। वह अति बहुमत की उपस्थिति को देखकर अधिक परेशान होते।